हनुमान चालीसा , बजरंग बाण और संकटमोचन हनुमान अष्टक का पाठ अत्यंत प्रभावकारी है। और इस पाठ का बड़ा महत्व है मंगलवार के दिन हनुमान जी की पूजा की जाती है, नियमित पाठ से घोर संकट भी दूर होने लगते है|
बाल समय रवि भक्षि लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों
ताहि सो त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो
देवन आनि करी विनती तब,
छाड़ि दियो रवि कष्ट निवारो
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो, संकटमोचन नाम तिहारो
बालि की त्रास कपीस बसै गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो
चौंकि महामुनि शाप दियो तब ,
चाहिए कौन बिचार बिचारो
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के शोक निवारो,
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो, संकटमोचन नाम तिहारो
अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीश यह बैन उचारो
जीवत ना बचिहौ हम सो जु ,
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो
हेरी थके तट सिन्धु सबै तब ,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो,
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो, संकटमोचन नाम तिहारो
रावण त्रास दई सिय को तब ,
राक्षसि सो कही सोक निवारो
ताहि समय हनुमान महाप्रभु ,
जाए महा रजनीचर मारो
चाहत सीय असोक सों आगिसु ,
दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो,
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो, संकटमोचन नाम तिहारो
बान लग्यो उर लछिमन के तब ,
प्राण तजे सुत रावन मारो
लै गृह बैद्य सुषेन समेत ,
तबै गिरि द्रोण सुबीर उपारो
आनि संजीवन हाथ दई तब ,
लछिमन के तुम प्रान उबारो,
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो, संकटमोचन नाम तिहारो
रावन युद्ध अजान कियो तब ,
नाग कि फांस सबै सिर डारो
श्री रघुनाथ समेत सबै दल ,
मोह भयो यह संकट भारो
आनि खगेस तबै हनुमान जु ,
बंधन काटि सुत्रास निवारो,
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो, संकटमोचन नाम तिहारो
बंधु समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो
देवहिं पूजि भली विधि सों बलि ,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो
जाये सहाए भयो तब ही ,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो,
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो, संकटमोचन नाम तिहारो
काज किये बड़ देवन के तुम ,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो
कौन सो संकट मोर गरीब को ,
जो तुमसो नहिं जात है टारो
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु ,
जो कछु संकट होए हमारो,
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो, संकटमोचन नाम तिहारो
दोहा
लाल देह लाली लसे , अरु धरि लाल लंगूर I
बज्र देह दानव दलन , जय जय जय कपि सूर II