Jai Ambe Gauri Durga Aarti Lyrics – श्री दुर्गा आरती – जय अम्बे गौरी

माँ दुर्गा की मुख्य आरती जय अम्बे गौरी मानी जाती है, अम्बे तू है जगदम्बे काली और जगजननी जय! जय! माँ, दुर्गा आरती भी मां के ही अन्य रूपो की आरती है! देवी दुर्गा के स्वयं कई रूप हैं विभिन्न रूपों में दुर्गा भारत और नेपाल के कई मन्दिरों और तीर्थस्थानों में पूजी जाती हैं।

दुर्गा माताजी की आरती:

जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा गौरी |
तुमको निसदिन ध्यावत हरि ब्रम्हा शिवरी॥

मांग सिंदूर विराजत टीको मृगमदको।
उज्जवल से दोऊ नैना चन्द्रवदन नीको॥२॥

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजे।
रक्त पुष्प गल माला कण्ठन पर साजे॥३॥

केहरि वाहन राजत खड्ग खप्पर धारी|
सुर नर मुनि जन सेवत तिनके दुःख हारी॥४॥

कानन कुंडल शोभित नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत सम ज्योति॥५॥

शुंभ निशंभु विदारे महिषासुरधाती।
धूम्रविलोचन नैना निशदिन मदमाती॥६॥

चण्ड मुण्ड संहारे शोणित बीज हरे।
मधु कैटभ दोउ मारे सुर भयहीन करे॥७॥

ब्रह्माणी रुद्राणी तुम कमलारानी।
आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी॥८॥

चौसंठ योगिनी गावत नृत्य करत भैरुँ।
बाजत ताल मृदंगा अरु डमरुँ॥९॥

तुम ही जग की माता तुम ही हो भरता।
भक्तन की दुःखहर्ता सुख सम्पत्ति कर्ता॥१०॥

भुजा चार अति शोभित वर मुद्रा धारी।
मनवांच्छित फल पावे सेवत नर नारी॥११॥

कंचन थाल विराजत अगर कपुर बात्ती।
श्री माल केतु में राजत कोटि रतन ज्योती॥१२॥

श्रीअम्बे जी की आरती जो कोई नर गाये।
कहत शिवानंद स्वामी सुख संपत्ति पाये॥१३॥

बोल जैकारा शेरावाली दा सच्चे दरबार की जय!

दुर्गा माता को देवी और शक्ति भी कहते है, नवरात्रि और दूर्गा पूजा एक वार्षिक हिन्दू पर्व है जिसमें हिन्दू देवी दुर्गा की पूजा की जाती है. नवदुर्गा हिन्दू धर्म में माता दुर्गा अथवा पार्वती के नौ रूपों को एक साथ कहा जाता है।

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।

प्रसिद्ध दुर्गा मंदिर की सूची जानने के लिए यहाँ क्लिक करें.

Durga_pandal-India

दुर्गा पूजा को पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, मिथिला क्षेत्र, बिहार, झारखंड और नेपाल में नवरात्रि के छठे से दसवें दिन तक मनाए जाने वाले हिंदू देवी दुर्गा उत्सव के दुर्गोत्सव के रूप में भी जाना जाता है।

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