हिरण्यकशिपु ने वरदान प्राप्त किया कि ना मैं दिन में मरू ना रात में , ना शास्त्र से मरू , स्त्री, पुरुष तथा किन्नर,देवता ,मनुष्य तथा दैत्य , ना आकाश में मरू ना धरती पर|
नृसिंह बोले- ‘यह सन्ध्या काल है। मुझे देख कि मैं कौन हूँ। यह द्वार की देहली, ये मेरे नख और यह मेरी जंघा पर पड़ा तू।’ अट्टहास करके भगवान ने नखों से उसके वक्ष को विदीर्ण कर डाला।
श्री नृसिंह प्रणाम – नृसिंह आरती हिंदी में – नमस्ते नरसिंहाय
नमस्ते नरसिंहाय प्रह्लादाह्लाद-दायिने।
हिरण्यकशिपोर्वक्षः-शिला-टङ्क-नखालये।।
मैं भगवान नरसिंह को प्रणाम करता हूँ जो प्रह्लाद महाराज को आनंद देते हैं और जिनके नाखून
राक्षस हिरण्यकशिपु की पत्थर जैसी छाती पर छेनी की तरह हैं।
इतो नृसिंहः परतो नृसिंहो यतो यतो यामि ततो नृसिंहः।
बहिर्नृसिंहो हृदये नृसिंहो नृसिंहमादि शरणं प्रपद्ये॥
भगवान नृसिंह यहाँ भी हैं और वहाँ भी। मैं जहाँ भी जाता हूँ भगवान नृसिंह वहाँ होते हैं। वह हृदय में हैं और बाहर
भी हैं। मैं भगवान नृसिंह को समर्पित हूँ, जो सभी चीज़ों के मूल और सर्वोच्च आश्रय हैं।
तव कर-कमल-वरे नखम् अद्भुत-श्रृंङ्गम्
दलित-हिरण्यकशिपु-तनु-भृंङ्गम्
केशव धृत-नरहरिरूप जय जगदीश हरे॥
हे केशव! हे ब्रह्मांड के स्वामी! हे भगवान हरि, जिन्होंने आधा मनुष्य, आधा सिंह का रूप धारण किया है! आपकी जय हो! जिस प्रकार कोई व्यक्ति अपने नाखूनों के बीच ततैया को आसानी से कुचल सकता है, उसी प्रकार आपके सुंदर कमल के हाथों के अद्भुत नुकीले नाखूनों द्वारा ततैया जैसे राक्षस हिरण्यकशिपु के शरीर को चीर दिया गया है।
इसकी रचना भगवान के महान भक्त श्रील जयदेव गोस्वामी द्वारा की गई है ।